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घनाक्षरी / मिलन मलरिहा

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<poem>
::::::(1)
नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन
::::आज सबो पढ़लिख, होगे हे गवार रे!
::::::(2)
पर घर नास कर, छाबे जब घर संगी
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