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09:16, 21 फ़रवरी 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=एक उर्सुला होती है
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ओ
मेरी तुम
लुका छिपी अब
बहुत हो गयी
सारे सपने
रात धो गयी
सोग मनाना
व्यर्थ है अब तो
चलो करें
उदयोग नया कुछ
तोडें
नयी जमीन।
</poem>