442 bytes added,
14:35, 17 मार्च 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
|संग्रह=
}}
{{KKCatHaiku}}
<poem>
(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली
(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली
(2)
बादल छाये
धरती पर ऐसे
मोहिनी जैसे
</poem>