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14:42, 17 मार्च 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
|संग्रह=
}}
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<poem>
(1)
फूली सरसों
भटकता फिरता
बावरा मन
(2)
जान न पाई
छलिया है फागुन
दीवानी धरा
(3)
हवा को आज
फागुन ने पिलाई
कैसी शराब
(4)
लेकर आई
मदभरा मौसम
ये फगुनाई
(5)
फगुनाहट
आके फुसफुसाई
मस्तानी आई
</poem>