भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फागुन (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला
Kavita Kosh से
(1)
फूली सरसों
भटकता फिरता
बावरा मन
(2)
जान न पाई
छलिया है फागुन
दीवानी धरा
(3)
हवा को आज
फागुन ने पिलाई
कैसी शराब
(4)
लेकर आई
मदभरा मौसम
ये फगुनाई
(5)
फगुनाहट
आके फुसफुसाई
मस्तानी आई