भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्ध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
कहाँ तक जायेगी झंकार ?
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?
प्रेमी, भक्त, विदग्ध वियोगी
जिसमें भी व्याकुलता होगी
क्या न वही बनकर सहभोगी छेड़ेगा ये तार
जाति, धर्म, भाषा से उठकर
मानव-मन की हर धड़कन पर
गूँजेगें क्या मेरे ये स्वर युग-युग इसी प्रकार?
जग तो सच्चा भी है झूठा
जो आँखें मिलते ही रूठा
किन्तु सुना है, काव्य अनूठा रहता सदाबहार
कहाँ तक जाएगी झंकार
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?
<poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
कहाँ तक जायेगी झंकार ?
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?
प्रेमी, भक्त, विदग्ध वियोगी
जिसमें भी व्याकुलता होगी
क्या न वही बनकर सहभोगी छेड़ेगा ये तार
जाति, धर्म, भाषा से उठकर
मानव-मन की हर धड़कन पर
गूँजेगें क्या मेरे ये स्वर युग-युग इसी प्रकार?
जग तो सच्चा भी है झूठा
जो आँखें मिलते ही रूठा
किन्तु सुना है, काव्य अनूठा रहता सदाबहार
कहाँ तक जाएगी झंकार
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?
<poem>