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‘‘हे नागौरणदिन बळैनाड़ा तोड़ण आस पळै बळद मरावण ब’ण फोहा रूई रा तूं क्यूं चाली आधै सावण!’’बादळ ढळै
मूंढै पसरी पता हालै-चरचा चालै बखत रै बिखै रो परमाण आभै सामीं बूढ़ी लकीरां...चारूं कानीं खुंखावंती-खरणावंतीपड़ती छांट जमती रेत धूड़ उडावंती आंधी सूंहळ बैंवता स्यात करै आ’ई सवाल!बणग्या खेत
सवाल आंधी रो नीं आस रा पग मोटा सवाल...!रेत रो, खेत रो धोरै बूरयो धन अंवेरण रो। धन...!खेत रै मूंडै रमी रेत रेत...!!जिण रै रूंडिग भरै-रूंपुरखां री देही रो पसेव बंधावै धीज देवै होसळौ जिण पाण घूमूं देही में पाळतो प्रीत परोटूं रीत।भरै कोठा
पण आस टूटै
सुख खूटै
सूखै खेत
बळता ओरण...!
चाली जद बैरण नागौरण।
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