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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सब्जबागों को अपने मन में सजाये रखिये,
लोग उकता गए, माहौल बनाये रखिये !
सच तो ये है कि खोखले हैं सभी आतिशदां,
रोशनी होगी ही कुछ, दिल को जलाये रखिये !
आज चौराहे पर छाया है, गज़ब सन्नाटा ,
द्रोपदी लुट रही, सर अपना झुकाए रखिये !
आज हर चाँद, हमें दागदार लगता है,
पाप को पाक लिबासों में छिपाए रखिये!
बड़ों कि गन्दगी दौलत में छिप गयी यारों,
वो बड़े हैं, दुआ - सलाम बनाये रखिये !
बच्चियां, घर से निकलने मे सहम जाती हैं,
आप कहते हो, एहतराम बनाये रखिये ??
मत सुनो मत सुनो, ‘आनंद’ की बातें लेकिन,
यारों, इंसान को इंसान बनाये रखिये !!
</poem>
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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
सब्जबागों को अपने मन में सजाये रखिये,
लोग उकता गए, माहौल बनाये रखिये !
सच तो ये है कि खोखले हैं सभी आतिशदां,
रोशनी होगी ही कुछ, दिल को जलाये रखिये !
आज चौराहे पर छाया है, गज़ब सन्नाटा ,
द्रोपदी लुट रही, सर अपना झुकाए रखिये !
आज हर चाँद, हमें दागदार लगता है,
पाप को पाक लिबासों में छिपाए रखिये!
बड़ों कि गन्दगी दौलत में छिप गयी यारों,
वो बड़े हैं, दुआ - सलाम बनाये रखिये !
बच्चियां, घर से निकलने मे सहम जाती हैं,
आप कहते हो, एहतराम बनाये रखिये ??
मत सुनो मत सुनो, ‘आनंद’ की बातें लेकिन,
यारों, इंसान को इंसान बनाये रखिये !!
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