भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देसूंटो-6 / नीरज दइया

5,757 bytes added, 14:25, 26 जून 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=देसूंटो / नीरज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=देसूंटो / नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>
हां, ओ ईज है-
म्हारो देस
पण पूग्यो अठै म्हैं
थारै बीं देस सूं
बो है घर म्हारो
बठै है नींव म्हारी

असल मांय
कीं नीं है
इण देस मांय
घर मांय
जे टाळ
करां अलायदा-
दोय रंगा नै
नीं हुय सकै-
म्हारै सगळै सुपनां रो
कोई तीजो रंग

काळो रंग
जद लेवै सीख
उगटै आपी-आप
रंग धोळो
अर उजास
जठै भूलै मारग
काळूंठा हुय’र
छिटक जावे सेमूंढै
आंख री हद सूं बारै
सगळा रा सगळा
सुपना म्हारा

सुपना म्हारा
कदास कूड़ हुवैला
का फेर हुय सकै-
अेक दिन सांच
पण सांस
जद हुय जावै कूड़
सुपना रैय जावै
घणा-घणा दूर

सांस नीं थमै
जाणै फगत सांस
म्हारी दुनिया रै
आखै अंधार-पख मांय
है कठै-कठै उजास

सूरज दांई
ऊगै-बिसूंजै सांस
ओ जीवण है
जाणै नित आवै-जावै-
उजास अंधार

अठै अमिट अगन थारी
छेकड़ बचै कोनी कोई
किण विध सुणूं-
म्हैं थारी देस-राग

राग-रंग
उजास रा
अंधार रा
धरती रा
आभै रा
स्सौ कीं थारा
अर थूं अदीठ

रैवैला म्हारी दीठ सूं
थूं अदीठ
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै

म्हैं अेकलो
कोनी अेक इकाई
प्रेम रै दरवाजै जावै-
अेक मारग अबखो

करण नैं पूरी
म्हारी अेक इकाई
म्हैं आफळूं अर आफळूं
प्रेप-मारग

पूग उण दरवाजै
भोेगूं सूख सेज रो
पण बा घड़ी
आवै कोनी हाथ
जद रळै सांस सूं सांस
मिळै सुर सूं सुर
रचीजै अेक राग
सधै कद राग ?
बणै कद बीज ??

सांस-सांस सूं रळ परी
साधै अेक राग
अर गावै अेक हरजस-
थारै सुपनै रो
हां ऽ....तद उपजै
बीज सांस रो

जद तूठै कोई सुपनो
तद बणै बीज
सांस रो
पण बा घड़ी
आवै कोनी हाथ
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै

चढती-उतरती राग
मंडतो-खिंडतो रंग
करै मांय म्हारै
केई-केई वळा-
सेळ-भेळ ऊंधा-पाधरा

धोळै रंग मांय
लाध्या सात रंग
सात रंगा सूं साधी
बणाई जूण नै भटकावती
राग-देस

असल मांय
म्हारै पाखती
कीं नीं रैवैला
अर नकल मांय अठै
म्हैं बणाया है- केई-केई रंग
छेकड़ खूट जावैला
सगळा-रा-सगळा रंग

साव काळो काळ
जाणै लेवैला खोस
म्हारा सगळा रंग

आगूंच ठाह हुवै
पण ठाह नीं हुवै
कै म्हारै रंगां मांय है-
फगत अेक रंग पक्को
बो रंग मिट नीं सकै

बीं रंग अगाड़ी
खावैला पछाड़-
म्हारा सगळा-रा-सगळा रंग
म्हारा सगळा रंग
कच्चा रंग

अेक है पक्को रंग
जिको गिटक जावै
म्हारा सगळा रंग
सगळा-रा-सगळा रंग
ठाह नीं
कद आय पूगै
डाकी काळो-काळ

लाध्यो कोनी
किणी मिनख नैं
बो घर
जठै बूरी थूं-
माया थारी

किंयां काढूं
थारै जोड़ रो
कोई तोड़ सांवरा

धोळै रंग में
सात रंग सोधणिया
काळै रंग सामीं
अबोला क्यूं हुय जावां

जोवां-जोवां
कोई आधो-परयो ई जोवां
कोई तो रंग जोवां
काळे रंग मांय
कोई नूंवो रंग जोवां

पण काळै रंग मांय दीसै
फगत अर फगत
अेक ई रंग
काळो अर काळो
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,482
edits