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देसूंटो-6 / नीरज दइया

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थारै रंगां सूं
प्रगटिया रूप
लीकां-लीकां मंडिया रूप
सबदां मांय ढळिया रूप

म्है हुवणो चावूं
खाली अर खाली
करूं काढ बारै-
स्सौ कीं थारो-म्हारो
जोवूं उण मांय-
रूप थारो
रूप म्हारो

बसै देस
सांसा मांय
गूंथीज परो
मांय म्हारै
म्हारी मुगती बीना
कोनी मुगती थारी

मिलै हजार देसूंटा
पण रैवै अठै अखंड
थारा देस
केई-केई देस

थारी आ दुनिया
जिŸाी दीसै बारै
उण सूं बती है
मांय म्हारै !

म्हैं देस मांय
अर देस है मांय म्हारै !!

कोई नीं हुय सकै
थारै सरीखो
न्यारो-निरवाळो
अर निरमोही
आपरी दुनिया सूं
आपरै देस सूं

कोई नीं रैय सकै
छोड’र बारै
आपरी दुनिया नैं
आपरै देस नैं
भलाई मिलै देसूंटो

जद-जद भरूं
देस नैं आंख्यां मांय
भरीज जावै देस

देस-देस लाधैला
कठैई तो थनै
अटक्योड़ी
का भटकती-
ओळूं म्हारी

ओळूं रै अगाड़ी-कर
जद-जद थूं बगै
ओळूं म्हारी
घूमर घालै

अर भळै
अेकर पांतर जावूं म्हैं
ठाह नीं किण दिस
अदीठ हुय जावै
थारी फरूकती धजा

सांवरा !
सगळा देस थारा
सगळो म्हैं थारो
क्यूं राखी भळै थूं म्हारी-
सांस अडावै
ओळूं अडावै

थारै जोड़
कीं रचण नैं ?
कांईं रचूं म्हैं ?

पांच चीजां
थूं रळावै
तद ईज रळै
अर बण जावै-
आदम-बीज

थूं नीं करै भेद
सूंपै अेक बरोबर
पांचूं चीजां

सांवरा !
अेक डागळै
थाळी बाजै
अेक आंगणै
सासू गाजै

मिनख करै भेद
मिनख बणया भेद
धरती-धरती में
आभै-आभै में
अगन-अगन में
पवन-पवन में
पाणी-पाणी में

धरती खनै हुवै-
अगन, पवन अर पाणी

आभै खनै हुवै-
अगन, पवन अर पाणी

धरती री आंख मांय
रैवै आभो
अर आभै री काख मांय
रैवै धरती

म्हे करां पक्को
जाणै थूं मांड्यो
म्हांरी सांस मांय-कोई पाढो

अठै है
इतरा इतरा भेद
थूं बिना भेद रै सूंपी
पांती आई म्हारै
पांचू चीजां म्हारी
पण समझ कोनी आवै
थारा केई केई भेद
भेद मांयला भेद

थारै इण देस
खाली आवै मिनख
खाली जावै मिनख
भळै क्यूं अर क्यूं
आवै-जावै मिनख
 
म्हैं नीं जाणूं
इण सूं पैली-पछै
जाणूं फगत इŸाो
कै म्हैं आयो अठै

थारै रचाव
थूं खुद रचीजै
करतो रैवै कोतक
रचतो रैवै
नूंवां-नूंवां रंग

थूं घालै
म्हारै आखती-पाखती

क्यूं अर क्यूं
नित झांकां
दिन-रात झांकां

म्हानै परोटै
हां जिका नैं
हां जियां ई
परोटै थूं

थूं परोट जाणै
भलै-भलै नैं
थारी आंख री
रैवै हद मांय
दीठ-अदीठ
थारा सगळा देस

बारै कांई है
बता थारी आंख सूं
बचण रो पाळै
लोग भरम
आखी जूण
कीं रचण रो पाळै
लोग भरम

म्हैं सांस-सांस नैं सुळझावूं
अर घुळती जावै-
सांस म्हारी
सुळती जावै-
सांस म्हारी