|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>ख़ता अब बनी है सजा का फ़सानाबताऊँ तुम्हें क्या है दिल का लगाना
ख़ता अब बनी है सजा का फ़साना<br>बताऊँ तुम्हें क्या है दिल का लगाना.<br><br>हवा में न जाने ये कैसा नशा है<br>पिये बिन ही झूमे है सारा ज़माना.<br><br> यहां रोज सजती है खुशियों की महफ़िल<br>मचलता है लब पर खुशी का तराना.<br><br> सदा घूमते हैं सरे-आम खतरे<br>बहुत ही है दुश्वार खुद को बचाना.<br><br> करें कैसे अपने-पराये की बातें<br>दिलों ने अगर दिल से रिश्ता न माना.</poem>