भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं से हम / राकेश पाठक

11 bytes added, 11:50, 14 अक्टूबर 2017
{{KKCatKavita}}
<poem>
इस अंतस्थ में कितना कोलाहल है 
कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें
 सुनो बुद्ध, बुद्ध विवेक के व्यतिकरण के लिए आये थे इसी सलिल तट वृक्ष के नीचे यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा आओ इस तट पर सम हो लेते हैहैंआओ अपने "मैं " से "हम" हो लेते है हैं !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits