भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अपर्णा भटनागर |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चीं चीं चीं चीं
साज सजैया
जया की ये
नटखट गौरैया
अक्तूबर में
पाहुन बनकर
बिना सूचना
घर को आती.
कितने चक्कर
पड़तालों पर
उजियाले चौरस कोने पर
रोशनदान की उस चौखट पर
खट-खट
खट-खट
झटपट-झटपट
तिनके-तिनके
लीरी-लीरी
रेशम चीथड़े
रूई सजीली
बुनती कुनबा
मान मनैया
जया की ये चुलबुल गौरैया
शिवलिंग जैसे
छोटे-छोटे ,
हलके भूरे
धवल धौर-से
चिकने कोमल
बौर-बौर से .
रस-रस
रस-रस
बतरस-बतरस
मीठे-मीठे
कई बताशे
पगती ये
मिष्ठी हलवैया
जया की ये चुलबुल गौरैया
(जया की गौरैया के लिए)
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चीं चीं चीं चीं
साज सजैया
जया की ये
नटखट गौरैया
अक्तूबर में
पाहुन बनकर
बिना सूचना
घर को आती.
कितने चक्कर
पड़तालों पर
उजियाले चौरस कोने पर
रोशनदान की उस चौखट पर
खट-खट
खट-खट
झटपट-झटपट
तिनके-तिनके
लीरी-लीरी
रेशम चीथड़े
रूई सजीली
बुनती कुनबा
मान मनैया
जया की ये चुलबुल गौरैया
शिवलिंग जैसे
छोटे-छोटे ,
हलके भूरे
धवल धौर-से
चिकने कोमल
बौर-बौर से .
रस-रस
रस-रस
बतरस-बतरस
मीठे-मीठे
कई बताशे
पगती ये
मिष्ठी हलवैया
जया की ये चुलबुल गौरैया
(जया की गौरैया के लिए)
</poem>