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चलो ना सोते सोतेख़ुद को जाग रहा हैथोड़ा आजमायें॥जाने मन क्यूँभाग रहा है।
बैठ कर तट पर यूँ ही गिनते रहें लहरेंकलतक थी मद्धम पुरवाईया उतर जायें, इसी में और भी गहरे। सुरभित था आँगन अमराईछोड़ दे ख़ुद को, मौज़ों के हवाले जबसे बैरी पछुआ आयाखींच ले जाये भँवर या बाहर उछाले॥कोमल मन किसलय मुरझायाढूँढ लें मोतीदिन बदलासंग-संगरातें भी बदलीतैरना भीकबतक रुककरसीख जायें॥फ़ाग रहा है।
वनों में कूकती कोयल की आवाज़ सुन आयेंबिहँस रही थी क्यारी-क्यारीमहमह थी सारी फुलवारीमिलायें उसके स्वर रूप भी कबतक साथ निभाताउन फूलों से स्वर खुद को भूल जायें। कैसा नाताकलापी जब करे नर्तन थोड़ा-सा ठहर जाएँडाल से छूटीदेकर ताल कदमों की, गति जीवन पंखुरियों में ले आयें। चाहे थिरक लेंलिपटा कहाँया फिर पराग रहा है। अकेलेगुनगुनाएं॥प्यासे बैठे रहे बेचारे ढेरों पत्थर ताल किनारेज़मीं से हीं पहाड़ों की ऊँचाई नाप कर देखेंकरें उनपर चढ़ाईलहर-लहर है, हौसलों को माप कर देखें। छूकर जाती चोटी पर चढ़ें उसपार क्या है देख तो आयेंलेकिन प्यास नहीं बुझ पातीसवारी बादलों की कर थोड़े से मचल जायें। याचक थाथोड़ा आसमाँपत्थर बन बैठाहक़ कामुट्ठी में दाता बनादबा लायें॥तड़ाग रहा है।
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