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कार्यकर्ता सुबह देरी से उठता है और सभी के मुकाबले
देर रात तक पढ़ता रहता है अकेला
लैम्प जलाकर
 
पीकर चाय
थाली में परोसा बिना शिकायत चुपचाप खाकर
कार्यकर्ता
निकल पड़ता है घर से बाहर
पार्टी के दफ़्तर में आता है,
अख़बार पढता है
चाय की ऑर्डर दे आता है
चाय पीता है
सहभागी होता है
राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय विषयों की चर्चा में
चर्चा सुनता है मन लगाकर
शोषणकर्ता और सरकार सभी की
उधेड़ता है बखिया !
 
जुलूस के पहले
बैनर रंगवाता है और उन्हें चढ़ाता है डण्डियों पर
मार्क्स, फूले, शाहू, आम्बेडकर, चार्वाक, बुद्ध, साने गुरूजी
सभी का जुलूस चलता है उसके भेजे में
जात, धर्म, दहेज़, अन्धश्रद्धा, निरक्षरता, ग़रीबी
बेरोज़गारी, महँगाई, सभी के ख़िलाफ़
लड़ता रहता है कार्यकर्ता
नारेबाज़ी करता हुआ
आवाज़ ठेठ उसकी नाभी की जड़ से निकलती है
 
ठण्ड, धूप, बारिश, तूफ़ान
कभी भी नहीं होता उसके पास आराम
भरी दोपहरी साईकिल पर पैदल मारता
अखबारो को खबर पहुँचाता है
सभा के लिए स्टेज सजाता है
साउण्ड-सिस्टम चैक करता है,
कुर्सियाँ लगाता है
नेता के स्टेज पर पहुँचने पर
नीचे सबसे आगे जाकर बैठता है
सुनते-सुनते,
कार्यकर्ता भाषण देने का देखता है स्वप्न
 
मुम्बई, दिल्ली, वाशिंगटन तक सारी
जानकारी जुटाकर रखता है कार्यकर्ता
काम करते, सोच-विचारते, चर्चा करते-करते
रोज़ थक जाता है कार्यकर्ता
थकान मिटाने
कभी-कभार उतार लेता है
एक-दो पेग,
 
देर रात थकाहारा
घर पहुँचता है कार्यकर्ता
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