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मनोविनोदिनी-1 / कुमार मुकुल

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|रचनाकार=कुमार मुकुल
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|संग्रह=एक उर्सुला होती है
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<poem>
खाना खा लिया है कवि महोदय ने
सतरह नदियों के पार से
आता है एक स्वर
चैट बाक्स पर
छलकता सा
हां
खा लिया
आपने खाया
हां खाया
और क्या किया दिन भर आज
आज
सोया और पढा पढा और सोया
खूब
फिर हंसने का चिन्ह आता है
तैरता सा

और क्या किया
और
माने सीखे तुम के
मतलब
मतबल तू और मैं तुम
हा हा
पागल
यह क्या हुआ

यह दूसरा माने हुआ
तू और मैं का

दूसरा माने
वाह
खूब
हा हा
हा हा हा

</poem>
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