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|रचनाकार=नेत्र सिंह असवाल
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मुखै ऐथर सौ चरेतर करदीं लोग
पीठ पीछ सर्र , भूलि जैन्दि लोग I
उज्याड़ बाड़ खांद , चुप द्यखदा रंदी लोग
निगुसें का ढांगा थैं , कच्यांद रंदी लोग।
</poem>
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