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|रचनाकार=महेन्द्रसिंह सिसोदिया 'छायण'
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<poem>
परतख ओस दरखतां पानां,
भू सब तरूवर भीना|
वसुधा प्हैर वसन हरियाळा,
लुळै वारणां लीना|

आयौ नहीं भासकर आभै,
चंदो घरां सिधायौ|
तारां टिमटिमतां ई कैग्या,
नैही शीत न्हायौ|

धूंवर ढक दीनी धरती नै,
कड़ड़़ हाड कंपावै|
अड़ड़ जिमी आंधियां आई,
इसडी़ शीत उपावै|

पंखां लियां पंखेरूं बैठा,
आभ नहीं उड पावै|
जीव जिनावर इण जाडे में,
घट धूजत घबरावै|

इतरी अरजी आज ईश सूं,
सैंस किरण रै साथां|
भू पर भळहळ करतो भेजो,
मिहिर तणा नम माथां||
</poem>
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