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|संग्रह=अंतस तास / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
म्हारा लाडला
थे हो मन्सूबे रा माळी
खाली क्यूं है थांरी थाळी
काया सम्मै सारू ढाळी
आगै रातां कोनी काळी
हळियो हाथां में ले हाळी
गावो नाचो दे दे ताळी
रे म्हारा लाडला ....

कूंपळ फूटै राख रूंखाळी
नावै रूखां नै तूं पाळी
आखर हिये में तूं राळी
दुनियां होगी जबरी जाळी
मत बण सूदी सी तूं छयाळी
कियां खावै तन्नै ल्याळी
लेकर लांपो मूंडो बाळी
रे म्हारा लाडला ...

अम्बर गाजै बीजळ कड़कै
छाती बैरीड़ां री धड़कै
जूनी पोळां बड़कै-बड़कै
चेतो अंगारो बण भड़कै
थारा भुजबळ जबरा फड़कै
बेगा जागो तड़के-तड़के
कसिया-हंसिया थारा खड़कै
रे म्हारा लाडला ...

थां रै खेतां में थै जाओ
हळिया हाथां सूं चलाओ
भैंस्यां गायां नै चराओ
पाणी ऊंटां नै भी पाओ
घर को धाको भी धिकाओ
मीठा अळगोजा बजाओ
बेटा घूघरिया घमकाओ
रे म्हारा लाडला ....
</poem>
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