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खोला द्वार / कविता भट्ट

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14'''खोला द्वार यूँ'''बोझिल पलकों से,नशे में चूरकदमों के लिए भी,मंदिर के जैसे ही।15टूटना-पीड़ाउससे भी अधिकपीड़ादायी हैटूटने-जुड़ने काविवश सिलसिला 16घृणा ही हो तोजी सकता है कोई जीवन अच्छाकिन्तु बुरा है होताप्रेम का झूठा भ्रम17तोड़ते नहींशीशा,तो क्या करते सह न सकेदर्द-भरी झुर्रियाँकिसी का उपहास18भरी गागर मेरी आँखों की प्रियकुछ कहती,जीवन पीड़ा सहतीलज्जित, न बहती19एक डोरी हो-जिस पर फैलाऊँरंग-बिरंगेउजले-नीले-पीलेसतरंगी सपने ।20रजनीगंधारात के पृष्ठों परतुम करतीखुशबू बिखेरतेसशक्त हस्ताक्षर ।-०-
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