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Kavita Kosh से
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चमन बेज़ार हो सारा मुझे अच्छा नहीं लगता ,
हवा हो जाए आवारा मुझे अच्छा नहीं लगता ।१
मेरे हिस्से की,कुछ खुशियाँ ,उसे भी तुम अता करना ,कहीं दिल दर्द का मारा मुझे अच्छा नहीं लगता ।२ तुम्हारी रहमतों में भी सुकूँ से सो नहीं पाती ,कोई बेघर, हो बेचारा मुझे अच्छा नहीं लगता ।३ बुलंदी और ये शुह्रत मुबारक हो तुम्हें साथी ,हो मेरे नाम का नारा मुझे अच्छा नहीं लगता ।४ कभी ख्वाहिश कोई मेरी अधूरी हो ,न हो पूरी ,फलक से टूटता तारा मुझे अच्छा नहीं लगता ।५ </poem>