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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''मनै मत भेजै महाराणी, तेरे भाई के पास,'''
'''मै बिलकुल ना, जाणा चाहती || टेक ||'''

मत कर राणी खोटी कार, मै सु एक पतिभरता नार,
पार मेरी औड़ै नहीं बसाणी, होज्यागा यो नाश,
उसनै मै ना मरवाणा चाहती ||

तेरै आगै मै जोडू सू हाथ, मेरा दुःख पाज्यागा औड़ै गात,
रात अँधेरी हो मोटी हाणी, या बात बताद्यु ख़ास,
मैं ना सिर उल्हाणा चाहती ||

मनै दासी बणकै दुखड़े ठाऐ, पाप-पुन्न सब जांगे बताये,
लाये नौकर भरवाले चाहे पाणी, हाम सा तेरे दासी-दास,
कर्म कै ना दाग लगाणा चाहती ||

राणी क्यूँ ला री सै फांसी, मै सु ढेड घड़ी दासी,
तूं कांशी कैसा समझै धाम बुवाणी, जड़ै करै ललित वास,
मैं ना शीश झुकाणा चाहती ||
</poem>
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