भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनै मत भेजै महाराणी, तेरे भाई के पास / ललित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनै मत भेजै महाराणी, तेरे भाई के पास,
मै बिलकुल ना, जाणा चाहती || टेक ||

मत कर राणी खोटी कार, मै सु एक पतिभरता नार,
पार मेरी औड़ै नहीं बसाणी, होज्यागा यो नाश,
उसनै मै ना मरवाणा चाहती ||

तेरै आगै मै जोडू सू हाथ, मेरा दुःख पाज्यागा औड़ै गात,
रात अँधेरी हो मोटी हाणी, या बात बताद्यु ख़ास,
मैं ना सिर उल्हाणा चाहती ||

मनै दासी बणकै दुखड़े ठाऐ, पाप-पुन्न सब जांगे बताये,
लाये नौकर भरवाले चाहे पाणी, हाम सा तेरे दासी-दास,
कर्म कै ना दाग लगाणा चाहती ||

राणी क्यूँ ला री सै फांसी, मै सु ढेड घड़ी दासी,
तूं कांशी कैसा समझै धाम बुवाणी, जड़ै करै ललित वास,
मैं ना शीश झुकाणा चाहती ||