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10:32, 30 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|चिंता / दुष्यंत कुमार
}}
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<poem>
आजकल मैं सोचता हूँ साँपों से बचने के उपाय
रात और दिन
खाए जाती है यही हाय-हाय
कि यह रास्ता सीधा उस गहरी सुरंग से निकलता है
जिसमें से होकर कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं
बेबस ! असहाय !!
क्या मेरे सामने विकल्प नहीं है कोई
इसके सिवाय !
आजकल मैं सोचता हूँ...!