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चिंता / दुष्यंत कुमार
Kavita Kosh से
आजकल मैं सोचता हूँ साँपों से बचने के उपाय
रात और दिन
खाए जाती है यही हाय-हाय
कि यह रास्ता सीधा उस गहरी सुरंग से निकलता है
जिसमें से होकर कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं
बेबस! असहाय!!
क्या मेरे सामने विकल्प नहीं है कोई
इसके सिवाय !
आजकल मैं सोचता हूँ...!