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{{KKRachna
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|अनुवादक=
|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
}}
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<poem>
अहाँ लग कंचन अछि
तँ अहाँ कीन सकै छी
कामिनी
ओकर रूपक मदिराकें पात्रमे ढ़ारि
रसे-रसे
वा एक्के बेरमे
गटकि सकै छी।

आलिंगन
चुम्बन
नखछेद
आ दशन छेद कऽ सकै छी
मुदा,
ओकर आत्मा नहि कीनि सकै छी।



</poem>
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