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12:09, 12 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
}}
{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
अहाँ लग कंचन अछि
तँ अहाँ कीन सकै छी
कामिनी
ओकर रूपक मदिराकें पात्रमे ढ़ारि
रसे-रसे
वा एक्के बेरमे
गटकि सकै छी।
आलिंगन
चुम्बन
नखछेद
आ दशन छेद कऽ सकै छी
मुदा,
ओकर आत्मा नहि कीनि सकै छी।
</poem>