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13:30, 23 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरी धूपों के सर को रिदा कौन दे
नींद में यह मुझे फूल सा कौन दे
खुद चलो, तो चलो, आसरा कौन दे
भीड़ के दौर में रास्ता कौन दे
ज़ुल्म किसने किया कौन मज़लूम था
सबको मालूम है फिर बता कौन दे
यह ज़माना अकेले मुसाफ़िर का है
इस ज़माने को फिर रहनुमा कौन दे
दिल सभी का दुखा है,मगर ऐ 'वसीम'
देखना है उसे बद्दुआ कौन दे।
</poem>