भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी धूपों के सर को रिदा कौन दे / वसीम बरेलवी
Kavita Kosh से
मेरी धूपों के सर को रिदा कौन दे
नींद में यह मुझे फूल सा कौन दे
खुद चलो, तो चलो, आसरा कौन दे
भीड़ के दौर में रास्ता कौन दे
ज़ुल्म किसने किया कौन मज़लूम था
सबको मालूम है फिर बता कौन दे
यह ज़माना अकेले मुसाफ़िर का है
इस ज़माने को फिर रहनुमा कौन दे
दिल सभी का दुखा है,मगर ऐ 'वसीम'
देखना है उसे बद्दुआ कौन दे।