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14:03, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
फिर मेरे दिल ने चोट खाई है
उस सितमगर की याद आई है
गुल फसुर्दा कली मलूल-ओ-उदास
कैसे कह दें बहार आई है
साज़े दिल पर ही उम्र भर हम ने
दस्ताने-हयात गाई है
बे ख़बर है वो हाल से मेरे
और यहां लब पे जान आई है
कैसे शिकवा करें तेरे ग़म का
रौशनी इस से फ़न ने पाई है।
</poem>