भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर मेरे दिल ने चोट खाई है / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
Kavita Kosh से
फिर मेरे दिल ने चोट खाई है
उस सितमगर की याद आई है
गुल फसुर्दा कली मलूल-ओ-उदास
कैसे कह दें बहार आई है
साज़े दिल पर ही उम्र भर हम ने
दस्ताने-हयात गाई है
बे ख़बर है वो हाल से मेरे
और यहां लब पे जान आई है
कैसे शिकवा करें तेरे ग़म का
रौशनी इस से फ़न ने पाई है।