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14:08, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सआते फ़ितनों को फिर जगाया है
दिल ने क्या गुल नया खिलाया है
क्यों न जलता निकाब ये तेरा
मैंने आहों से ये जलाया है
दिल का इक दाग़ भी नहीं मिटता
हमने रो रो के आज़माया है
आपके जौर का न हो चर्चा
जख़्मे-दिल सब तरह छुपाया है
अब किसे दास्तां सुनाएं हम
दिल भी अपना नहीं पराया है
हमको अंजान उस की फुरकत में
हर घड़ी दर्द से सताया है।
</poem>