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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
तेज़ चलते हैं हवाओं को पकड़ने वाले
क्यों रुकें राह में तूफ़ान से लड़ने वाले

उम्र भर एक ही खंडर में रहूँ मैं क्योंकर
बस्तियां फिर से बसाने हैं उजड़ने वाले

जलती रुत में कभी मिल जाते हैं साया बनकर
रंग और रूप के मौसम में बिछुड़ने वाले

तू मेरे जज़्ब-ए-बेलौस की तौहीन न कर
मेरी गुदड़ी में किसी लाल को जड़ने वाले

दिल को ख़ूबी है कि हर रुत में हरा रहता है
मेहर इस पेड़ के पत्ते नहीं झड़ने वाले।
</poem>
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