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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
सब इसे पहचान लेंगे तुम जहां ले जाओगे
ये मताए-दर्द है इसको कहां ले जाओगे

दोस्तो इस शहरे-बारौनक में आना सोचकर
जब यहां से जाओगे तन्हाईयाँ ले जाओगे

मैं तो हूँ बनता हुआ मिटता हुआ पानी में अक्स
मैं कहीं ठहरा नहीं मुझको कहां ले जाओगे।

</poem>
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