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03:12, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सब इसे पहचान लेंगे तुम जहां ले जाओगे
ये मताए-दर्द है इसको कहां ले जाओगे
दोस्तो इस शहरे-बारौनक में आना सोचकर
जब यहां से जाओगे तन्हाईयाँ ले जाओगे
मैं तो हूँ बनता हुआ मिटता हुआ पानी में अक्स
मैं कहीं ठहरा नहीं मुझको कहां ले जाओगे।
</poem>