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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
तूफ़ाने-हवादिस में किसे किसकी ख़बर है
सैलाब में डूबा हुआ हर एक ही घर है

आसेब अंधेरों के डराएं मुझे लेकिन
उम्मीदे-सहर है, मुझे उम्मीदे-सहर है

जो देख नहीं सकता हदे-वक़्त से आगे
वो शख्स ब-हर तौर बड़ा तंगनज़र है

तू वुसअते-माहौल में छाया है कुछ ऐसे
हर रहगुज़र आज तिरी राहगुज़र है

क्यों ले के चलूं साथ मैं हंगामे सफ़र आज
इक याद है तेरी सो मिरा ज़ादे-सफ़र है

तक़लीद के इस दौर में दुश्वार है लेकिन
ऐ मेहर ज़माने से अलग अपनी डगर है।

</poem>
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