1,308 bytes added,
03:39, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तूफ़ाने-हवादिस में किसे किसकी ख़बर है
सैलाब में डूबा हुआ हर एक ही घर है
आसेब अंधेरों के डराएं मुझे लेकिन
उम्मीदे-सहर है, मुझे उम्मीदे-सहर है
जो देख नहीं सकता हदे-वक़्त से आगे
वो शख्स ब-हर तौर बड़ा तंगनज़र है
तू वुसअते-माहौल में छाया है कुछ ऐसे
हर रहगुज़र आज तिरी राहगुज़र है
क्यों ले के चलूं साथ मैं हंगामे सफ़र आज
इक याद है तेरी सो मिरा ज़ादे-सफ़र है
तक़लीद के इस दौर में दुश्वार है लेकिन
ऐ मेहर ज़माने से अलग अपनी डगर है।
</poem>