1,128 bytes added,
03:40, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आंगन में फिर वो सुब्ह का मौसम न आयेगा
सूरज के साथ फूल सा पैकर न आयेगा
साये में जिसके धूप से बचकर पनाह ली
क्या पेड़ मुझको याद वो अक्सर न आयेगा
मैं क्यों नदी से राज़ कहूँ ऊनी प्यास का
अब मेरे रास्ते में समंदर न आयेगा
वो पेड़ जिसपे फल कोई अब तक नहीं लगा
उस पेड़ पर कभी कोई पत्थर न आयेगा
इसको ही ज़िन्दगी की हक़ीक़त समझ के जी
ये वक़्त जब गया तो पलट कर न आयेगा।
</poem>