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03:48, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तमाज़तों से भरी रहगुज़र में छोड़ गया
मुझे वो जलती रुतों के सफ़र में छोड़ गया
वो गूंजती है हर इक सिम्त दश्ते माज़ी में
वो शख्स अपनी सदा हर शजर में छोड़ गया
बहाव तेज़ बहुत था नदी के पानी में
वो खुद तो बह गया मुझको भँवर में छोड़ गया।
</poem>