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06:07, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़़रासी बात पे गुस्सा नहीं किया करते
ग़मेहयात का शिकवा नहीं किया करते
किसी भी हाल में ऐसा नहीं किया करते
नदी के पानी को मैला नहीं किया करते
तुम्हीं बताओ उन्हें जीत कैसे हासिल हो
जो जीतने का इरादा नहीं किया करते
मिलेगा फैसला उन को ही अपने हक़ में जो
बिना सबूत के दावा नहीं किया करते
हमें गवारा है मरना भी भूख से लेकिन
कभी ज़मीर का सौदा नहीं किया करते
कि जिन का साथ निभाते हैं सुख में हम उन से
बुरे दिनों में किनारा नहीं किया करते
भरोसा कुछ नहीं ‘अज्ञात' ज़िंदगानी का
दुबारा मिलने का वादा नहीं किया करते
</poem>