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{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
नहीं खुश देख पाती है किसी को भी कभी यारो
ये दुनिया हो गई देखो बहुत ही मतलबी यारो

कहीं पर भूख लाचारी कहीं पर जुल्म का परचम
जहाँ देखो वहीं दिखती है केवल बेबसी यारो

मिटा दुर्भावना दिल से सभी से दोस्ती कर लो
मदद मजलूम की करना है सच्ची बंदगी यारो

जरूरी है मुहब्बत से रहें मिल कर सभी इंसां
जला कर दीप उल्फ़त के मिटा दें तीरगी यारो

किसी मज़हब का हो चाहे किसी भी जाति का कोई
सभी को हक है जीने का सुकूं से ज़िंदगी यारो
</poem>
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