भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं खुश देख पाती है किसी को भी कभी यारो / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
नहीं खुश देख पाती है किसी को भी कभी यारो
ये दुनिया हो गई देखो बहुत ही मतलबी यारो
कहीं पर भूख लाचारी कहीं पर जुल्म का परचम
जहाँ देखो वहीं दिखती है केवल बेबसी यारो
मिटा दुर्भावना दिल से सभी से दोस्ती कर लो
मदद मजलूम की करना है सच्ची बंदगी यारो
जरूरी है मुहब्बत से रहें मिल कर सभी इंसां
जला कर दीप उल्फ़त के मिटा दें तीरगी यारो
किसी मज़हब का हो चाहे किसी भी जाति का कोई
सभी को हक है जीने का सुकूं से ज़िंदगी यारो