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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
वक़्त ने हर वक़्त ही ज़ेरो ज़बर जारी रखा
फिर भी हर इक हाल में हमने सफ़र जारी रखा

चाहता था दिल तो रुक जाना मगर जारी रखा
आबले तलवों में ले कर भी सफ़र जारी रखा

मुझ को कठपुतली बना कर रक़्स करवाती रही
ज़िंदगी ने इक तमाशा उम्रभर जारी रखा

आज भी इन उँगलियों से आती है ख़ुशबू तेरी
जादुई सी उस छुअन ने है असर जारी रखा

प्यार के दो बोल सुन कर दिल में ठंडक पड़ गयी
इस ख़राशे दिल पे मरहम ने असर जारी रखा

हादसों से आज तक भी वो उभर पाया नहीं
बदगुमानी ने तबाही का असर जारी रखा
</poem>
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