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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
उसूलों से बग़ावत कर रहे हो
ये तुम कैसी जसारत कर रहे हो

नहीं मालूम होता गुफ़्तगू से
रफ़ाक़त या अदावत कर रहे हो

मुझे हैरत है तुमको क्या हुआ है
जो रिश्तों की तिजारत कर रहे हो

नहीं बाक़ी है कोई मुद्दआ क्या
शहीदों पर सियासत कर रहे हो

बड़े नादान हो ‘अज्ञात’ तुम भी
मुक़द्दर से शिकायत कर रहे हो
</poem>
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