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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
कहाँ आसानी से मिलते सभी को दोस्त अच्छे
बड़ी क़िस्मत से मिलते हैं किसी को दोस्त अच्छे

सँवारा करते हैं इक दूजे को आईना बन कर
उजागर करते हैं हर इक कमी को दोस्त अच्छे

कभी पूजा को जाते मंदिर ओ मस्जिद में मिल कर
कभी हैं साथ जाते मयकशी को दोस्त अच्छे

बड़ी मस्ती में सारा वक़्त कटता दोस्तों संग
बनाते ख़ुशनुमा हैं ज़िंदगी को दोस्त अच्छे

निभाता दोस्ती जो सच्चे दिल से दोस्तों से
‘अजय अज्ञात’ मिलते हैं उसी को दोस्त अच्छे
</poem>
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