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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
उसका किसी भी ग़म से है रिश्ता नहीं अभी
दर्या में आग के जो है उतरा नहीं अभी

वो जो अना के दश्त से निकला नहीं अभी
मफ़हूम मेरे शे‘र का समझा नहीं अभी

जो भी पुरानी चीज़ें थीं मैंने बदल दीं सब
इस रूह के लिबास को बदला नहीं अभी

जाने वो कैसे जान गया मेरे दिल की बात
मैंने तो एक लफ़्ज़ भी बोला नहीं अभी

इक वक़्त था कि आंखों में थी रोशनी ग़ज़ब
चश्मे बगैर पास का दिखता नहीं अभी

इस ज़िंदगी से जंग अभी बरकरार है
‘अज्ञात’ मेरा हौसला टूटा नहीं अभी
</poem>
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