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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
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<poem>
मीर-ओ-ग़ालिब को पढ़ा तो राज़ हम कुछ पा गये
शायरी में कुछ सुहाने रंग भरने आ गये

झूठ की राहों पे चलना तर्क हम ने कर दिया
चलते-चलते हम सचाई की डगर पर आ गये

फूल झड़ते थे वो जब करता था हम से गुफ्तगू
वो तो जादूगर था हम बातों में उस की आ गये

उन की ख़ुशबू-ए-बदन का ये करिश्मा देखिये
सैर को आये थे, सारे बाग़ को महका गये

उस ने बातों में लगाया, एक दिन ऐसा हमें
चलते-चलते साथ उस के दूर तक हम आ गये

गूँजते हैं ज़िंदगी में क़हक़हे ही क़हक़हे
आप जिस दिन से हमारी ज़िंदगी में आ गये
</poem>
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