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मीर-ओ-ग़ालिब को पढ़ा तो राज़ हम कुछ पा गये / अनु जसरोटिया
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मीर-ओ-ग़ालिब को पढ़ा तो राज़ हम कुछ पा गये
शायरी में कुछ सुहाने रंग भरने आ गये
झूठ की राहों पे चलना तर्क हम ने कर दिया
चलते-चलते हम सचाई की डगर पर आ गये
फूल झड़ते थे वो जब करता था हम से गुफ्तगू
वो तो जादूगर था हम बातों में उस की आ गये
उन की ख़ुशबू-ए-बदन का ये करिश्मा देखिये
सैर को आये थे, सारे बाग़ को महका गये
उस ने बातों में लगाया, एक दिन ऐसा हमें
चलते-चलते साथ उस के दूर तक हम आ गये
गूँजते हैं ज़िंदगी में क़हक़हे ही क़हक़हे
आप जिस दिन से हमारी ज़िंदगी में आ गये