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06:16, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
एक दिन सब जहाँ से चल देंगे
साथ कब ज़िंदगी के पल देंगे
ढलते सूरज को कौन पूछेगा
चढ़ते सूरज को लोग जल देंगे
हम लगायेंगे जिस तरह के शजर
वैसे ही एक दिन वो फल देंगे
इस ज़माने में फूल मत बनना
लोग पैरों तले मसल देंगे
जितनी रस्में हैं वक्त के विपरीत
ऐसी रस्मों को हम बदल देंगे
छलनी करते हैं पैर जो सब के
ऐसे कांटों को हम कुचल देंगे
ऐसी आशा है आज कल बेकार
साफ़ पानी हमें ये नल देंगे
इतना कड़वा न तू जहाँ में बन
दुनिया वाले तुझे उगल देंगे
आओ पौधे लगाएँ मिल कर सब
कल को ये पेड़ बन के फल देंगे
</poem>