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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
कैसा जीवन भोगें लोग
चलती फिरती लाशें लोग

कुछ तो सोचें,समझें लोग
आपस में क्यों झगडें़ लोग

अपना कंधा अपनी लाश
ख़ुद ही ख़ुद को ढोऐं लोग

जीवन जीना दूभर है
मौत को क्यांे नहीं चाहें लोग

जितने नेता उतने रब
किस किस को अब पूजें लोग

अपनी अपनी चादर देख
अपने पैर पसारें लोग

सोने चंादी के हैं ख़ाब
नक़ली ज़ेवर पहनें लोग

छीना झपटी का है दौर
इक दूजे को लूटें लोग

वादा सस्ते गेहंू का
पानी को भी तरसें लोग

किस के दिल में क्या है बात
सबके मन कीे जानें लोग
</poem>
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