भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसा जीवन भोगें लोग / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
कैसा जीवन भोगें लोग
चलती फिरती लाशें लोग
कुछ तो सोचें,समझें लोग
आपस में क्यों झगडें़ लोग
अपना कंधा अपनी लाश
ख़ुद ही ख़ुद को ढोऐं लोग
जीवन जीना दूभर है
मौत को क्यांे नहीं चाहें लोग
जितने नेता उतने रब
किस किस को अब पूजें लोग
अपनी अपनी चादर देख
अपने पैर पसारें लोग
सोने चंादी के हैं ख़ाब
नक़ली ज़ेवर पहनें लोग
छीना झपटी का है दौर
इक दूजे को लूटें लोग
वादा सस्ते गेहंू का
पानी को भी तरसें लोग
किस के दिल में क्या है बात
सबके मन कीे जानें लोग