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08:09, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अभी उठ के जाने का जी तो नहीं है
तबीयत हमारी भरी तो नहीं है
किसी बात पर दिल धड़कता नहीं अब
महब्बत में कोई कमी तो नहीं है
किसी दिन करम की हो मुझ पर भी बारिश
तेरे घर में कोई कमी तो नहीं है
मशक़्क़्त करो दौलते-इल्म पाओ
ये दौलत कहीं भी गढ़ी तो नहीं है
जो कानों में रस घोलती है हमारे
कन्हैया की ये बांसुरी तो नहीं है
नई चाल चलते हो हर रोज़ हम से
सियासत है ये दोस्ती तो नहीं है
उजाड़ी गई थी जो महलों की ख़ातिर
वो बस्ती कभी फिर बसी तो नहीं है
</poem>