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अभी उठ के जाने का जी तो नहीं है / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
अभी उठ के जाने का जी तो नहीं है
तबीयत हमारी भरी तो नहीं है
किसी बात पर दिल धड़कता नहीं अब
महब्बत में कोई कमी तो नहीं है
किसी दिन करम की हो मुझ पर भी बारिश
तेरे घर में कोई कमी तो नहीं है
मशक़्क़्त करो दौलते-इल्म पाओ
ये दौलत कहीं भी गढ़ी तो नहीं है
जो कानों में रस घोलती है हमारे
कन्हैया की ये बांसुरी तो नहीं है
नई चाल चलते हो हर रोज़ हम से
सियासत है ये दोस्ती तो नहीं है
उजाड़ी गई थी जो महलों की ख़ातिर
वो बस्ती कभी फिर बसी तो नहीं है